1975 की ब्लॉकबस्टर मूवी ‘शोले’ हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर साबित हुई। इस फिल्म के किरदार आज भी लोग भूल नहीं पाए हैं। ‘कितने आदमी थे…’ से लेकर ‘इतना सन्नाटा क्यों है भाई…’ जैसे डायलॉग्स भी फिल्म की तरह ब्लॉकबस्टर हैं। इस फिल्म में अमजद खान ने गब्बर सिंह का किरदार निभाया था। जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है। Amazing Facts about Sholay Movie Shooting
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रामगढ में फिल्म के हर सीन की शूटिंग की गयी थी इस फिल्म की वजह से ये गांव पूरी दुनिया में पॉपुलर हो गया लेकिन इस गांव के लोग शोले फिल्म की शूटिंग को यहां के लिए श्राप मानते है इस फिल्म ने इस गांव की पहचान को ही धूमिल कर दिया फिल्म की अधिकतर शूटिंग इस बसाई गई रामगढ़ गांव में हुई थी जब फिल्म की शूटिंग हो रही थी तब यहां पर काफी शोर सराबा होने से फिर बंदूक कि आवाजें, बॉम्ब की फटने से यहांकी जो दुर्लभ गिद्द होते थे वो गायब हो गए हैं।

रामायण के नाम पर पड़ा गांव का नाम :
रामनगर का नाम रामायण के नाम से बनाया गया है। ये पूरा पहाड़ी एरिया है। पूरी फिल्म के दौरान यहां की पहाड़ियां भी दिखाई देती हैं। रामनगर बेंगलुरु से केवल एक घंटे की दूरी पर स्थित है। ‘शोले’ फिल्म की शूटिंग से ये गांव इतना पॉपुलर हुआ कि अब लोग यहां पर घूमने आते हैं।
रामनगर की बेंगलुरु से दूरी करीब 50 किलोमीटर है। यानी यहां पर सिर्फ 1 घंटे में पहुंच सकते हैं। गांव के ग्रामीणों में इसके निर्माण कार्य को लेकर नाराजगी है। दरअसल आज से 35 साल पहले यहां मशहूर फिल्म ‘शोले’ की शूटिंग हुई थी। पूरे पहाड़ी इलाके में बकायदा रामगढ़ गांव बसाया गया था। अब उसी जगह एक रिसोर्ट बनाने की तैयारी चल रही है। इतना ही नहीं इस रिसोर्ट का नाम भी रामगढ़ रिसोर्ट रखने का फैसला किया गया है लेकिन इस कवायद से रामगढ़ के लोग बहुत परेशान हैं। रामनगर की चट्टानें फेमस हैं। इसके साथ, रामदेवरा बेट्टा, जनपद लोक भी मुख्य आकर्षण हैं। आप यहां जाते हैं तब बर्ड वॉचिंग, ट्रेकिंग, रॉक क्लाइंबिंग जरूर करें।
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इसलिए मानते हैं अभिशाप :
साल 1973 से 1975 के बीच शोले की अधिकांश शूटिंग यहीं हुई थी. लेकिन शोले की शूटिंग के 42 साल बाद भी यहां के लोगों में ग़ुस्सा है. उनकी शिकायत है कि इस फ़िल्म की शूटिंग से उन्हें कुछ मिला तो नहीं, बल्कि यहां की ख़ासियत भी छिन गई. रामदेवरबेट्टा यानि रामगढ़ की पहचान ‘शोले’ फिल्म से तो जुड़ ही गई है साथ ही ये इलाका उन चुनिंदा गिद्धों के लिए भी जाना जाता है जिन्हें लॉन्ग बिल्ड वल्चर कहा जाता है। रामगढ़ की इन पहाड़ियों पर ही ये दुर्लभ तरह के गिद्ध पाए जाते हैं। कुछ अरसे पहले तक इनकी संख्या करीब 2000 तक दुर्लभ गिद्ध थे लेकिन अब इनकी संख्या महज 12 रह गई है। अब रिसोर्ट बनने से बच कुचे गिद्ध भी मौत के मुंह में समा जाएंगे।

विवाद के बाद निर्देशक रमेश सिप्पी ने बसाया था रामगढ़ गांव :
रामनगरम के जिला कमिश्नर वी सूर्यनाथ कामत बताते हैं कि उन दिनों कर्नाटक और महाराष्ट्र में सीमा विवाद बढ़ गया था. इसी दौरान भाषा के आधार पर कन्नड़ लोगों से हिंसा होने की ख़बर आई. इससे कन्नड़ एसोसिएशन के लोग नाराज़ हो गए और रामनगरम से शोले की टीम को भगाने जा पहुंचे. निर्देशक रमेश सिप्पी ने इसकी शिकायत कमिश्नर से की तो चार लोगों को हिरासत में लिया गया. पुलिस के दखल देने के बाद मामला सुलझा.
रामनगरम की पहाड़ियों में शोले की शूटिंग के लिए रामगढ़ नाम का एक गांव बसाया गया था. यह रामनगरम से अधिक लोकप्रिय हुआ. स्थानीय कारोबारी वी प्रभाकर बताते हैं कि आज भी दूर-दराज के इलाकों में लोग उन्हें रामगढ़ वाले प्रभाकर के रूप में ही जानते हैं लेकिन ये रामगढ़ गांव अब मौजूद नहीं है. क्योंकि शूटिंग ख़त्म होने के बाद ये गांव उजाड़ दिया था. जाते वक्त जीपी सिप्पी ने रामगढ़ गांव का क़ीमती सामान स्थानीय दुकानदार पीवी नागराजन को एक लाख़ रुपये में बेचने की भी पेशकश की थी, लेकिन बात बनी नहीं.
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‘शोले’ मूवी में रामगढ़ गांव की कहानी दिखाई गई थी। इस गांव का पूरा सेट फिल्म के प्रोड्यूसर्स ने तैयार करवाया था। सेट तैयार होने के बाद फिल्म की शूटिंग 1973 में शुरू हो गई थी, जो पूरे दो साल तक चली थी। गांव तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क का निर्माण भी किया गया था। फिल्म की शूटिंग खत्म होने के बाद स्थाई लोगों ने रामनगर के एक हिस्से को ‘सिप्पी नगर’ का नाम दे दिया था। शूटिंग के बाद सेट को उजाड़ दिया गया था।
रेल किराया :
दिल्ली से बेंगलुरु का रेल किराया (स्लीपर) लगभग 800 रुपए
मुंबई से बेंगलुरु का रेल किराया (स्लीपर) लगभग 500 रुपए
यहां से रामनगर के लिए बस चलती हैं। आप टैक्सी करके जा सकते हैं।

सरकार के की है याचिका :
गांव के लोग सरकार को चिट्ठी लिखकर सारी समस्याएं बताई। रिजॉर्ट बनने से यहां काफी लोगों का आना जाना लगा रहेगा इस कारण से जो बची खुची प्रकृति को भी नष्ट कर देंगे। हमें हमारी प्रकृति को ऐसे नुकसान नहीं करना चाहिए जब फिल्म की शूटिंग पूरी हो गई तब पूरे गांव को उजाड़ के चल गए इस फिल्म ने तो इस गांव को पॉपुलर कर दिया हो लेकिन इस गांव के लोगों के लिए एक समस्या बन गई है।
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वन विभाग ने भी इस बाबत जिलाधिकारी को चिट्ठी लिखी है जिसमें कहा गया है कि जो जमीन सरकार ने आवंटित की थी वो सिर्फ मवेशियों को चराने के लिए थी और वहां पर किसी भी तरह का निर्माण नहीं हो सकता है। इसके अलावा वन विभाग ने सरकार को एक प्रस्ताव भी भेजा है जिसमें दुर्लभ प्रजाति के गिद्धों को संरक्षित करने की बात कही है।