हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है। पंचांग के अनुसार इस वर्ष महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को 21 फरवरी के दिन मनाया जाएगा। Maha Shivratri Vishesh Yog
इस वर्ष महाशिवरात्रि के दिन एक विशेष योग बन रहा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह विशेष संयोग लगभग 59 साल बाद बन रहा है, जो साधना-सिद्धि के लिए खास महत्व रखता है।मान्यता है कि इस दिन शिव और पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था।
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महाशिवरात्रि पर भगवान शिव का व्रत करने से और उनकी आराधना करने से शिव खुश होते हैं और भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं. इस दिन शिवालयों में भोले के भक्त शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं.
ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि ज्योतिष शास्त्र में साधना के लिए तीन रात्रि विशेष मानी गई हैं. इनमें शरद पूर्णिमा को मोहरात्रि, दीपावली की कालरात्रि तथा महाशिवरात्रि को सिद्ध रात्रि कहा गया है.
इस बार महाशिवरात्रि पर चंद्र शनि की मकर में युति के साथ शश योग बन रहा है. श्रवण नक्षत्र में आने वाली शिवरात्रि व मकर राशि के चंद्रमा का योग ही बनता है.

जबकि, इस बार 59 साल बाद शनि के मकर राशि में होने से तथा चंद्र का संचार अनुक्रम में शनि के वर्गोत्तम अवस्था में शश योग का संयोग बन रहा है. चूंकि चंद्रमा मन तथा शनि ऊर्जा का कारक ग्रह है.
यह योग साधना की सिद्धि के लिए विशेष महत्व रखता है. इस बार महाशिवरात्रि पर सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग भी रहेगा. बता दें कि इस योग में भगवान शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है. इस दौरान शिव पुराण और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना भी शुभफल देय होता है.
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव पर एक लोटा जल चढ़ाने से ही भगवान शिव अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
भगवान शिव अपने भक्तों पर जितनी जल्दी प्रसन्न होते हैं उतनी ही जल्दी उनसे रुष्ट भी हो सकते हैं। ऐसे में आइए जानते वो 7 चीजें जिसे भूलकर भी भगवान शिव की पूजा के दौरान नहीं करना चाहिए।

शंख जल –
भगवान शिव ने शंखचूड़ नाम के असुर का वध किया था। शंख को उसी असुर का प्रतीक माना जाता है जो भगवान विष्णु का भक्त था। इसलिए विष्णु भगवान की पूजा शंख से होती है शिव की नहीं।
पुष्प –
भगवान शिव जी की पूजा में केसर, दुपहरिका, मालती, चम्पा, चमेली, कुन्द, जूही आदि के पुष्प नहीं चढ़ाने चाहिए।
करताल –
भगवान शिव के पूजन के समय करताल नहीं बजाना चाहिए।
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तुलसी पत्ता –
जलंधर नामक असुर की पत्नी वृंदा के अंश से तुलसी का जन्म हुआ था जिसे भगवान विष्णु ने पत्नी रूप में स्वीकार किया है। इसलिए तुलसी से शिव जी की पूजा नहीं होती।
तिल –
यह भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ मान जाता है इसलिए इसे भगवान शिव को नहीं अर्पित किया जाना चाहिए।

टूटे हुए चावल –
भगवान शिव को अक्षत यानी साबूत चावल अर्पित किए जाने के बारे में शास्त्रों में लिखा है। टूटा हुआ चावल अपूर्ण और अशुद्ध होता है इसलिए यह शिव जी को नही चढ़ता।
कुमकुम –
यह सौभाग्य का प्रतीक है जबकि भगवान शिव वैरागी हैं इसलिए शिव जी को कुमकुम नहीं चढ़ता।