हिंदू संस्कृति में प्रत्येक कार्य मुहूर्त देखकर करने का विधान है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है पंचक। जब भी कोई कार्य प्रारंभ किया जाता है तो उसमें शुभ मुहूर्त के साथ पंचक का भी विचार किया जाता है। नक्षत्र चक्र में कुल 27 नक्षत्र होते हैं। इनमें अंतिम के पांच नक्षत्र दूषित माने गए हैं। ये नक्षत्र धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती होते हैं। Panchak And Its Effect
धर्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन कोई भी मांगलिक कार्य करने से परहेज करना चाहिए अन्यथा शुभ फल की प्राप्ति नहीं होती है. प्रत्येक नक्षत्र चार चरणों में विभाजित रहता है। पंचक धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से प्रारंभ होकर रेवती नक्षत्र के अंतिम चरण तक रहता है। हर दिन एक नक्षत्र होता है इस लिहाज से धनिष्ठा से रेवती तक पांच दिन हुए। ये पांच दिन पंचक होता है।
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क्या होता है पंचक :
वैदिक ज्योतिष में पांच नक्षत्रों के विशेष मेल से बनने वाले योग को पंचक कहा जाता है। जब चंद्रमा कुंभ और मीन राशि पर रहता है तो उस समय को पंचक कहा जाता है। चंद्रमा एक राशि में लगभग ढाई दिन रहता है इस तरह इन दो राशियों में चंद्रमा पांच दिनों तक भ्रमण करता है। इन पांच दिनों के दौरान चंद्रमा पांच नक्षत्रों धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती से होकर गुजरता है। अतः ये पांच दिन पंचक कहे जाते हैं।
हिंदू संस्कृति में प्रत्येक कार्य मुहूर्त देखकर करने का विधान है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है पंचक। जब भी कोई कार्य प्रारंभ किया जाता है तो उसमें शुभ मुहूर्त के साथ पंचक का भी विचार किया जाता है।

वर्ष 2020 में ‘पंचक’ कब-कब :
- 30 दिसंबर 2019 प्रातः 9.33 से 4 जनवरी 2020 प्रातः 10.05 बजे तक
- 26 जनवरी सायं 5.39 से 31 जनवरी सायं 6.11 बजे तक
- 22 फरवरी मध्यरात्रि 1.29 से 27 फरवरी मध्यरात्रि 1.07 बजे तक
- 21 मार्च प्रातः 6.20 से 26 मार्च सायं 7.15 बजे तक
- 17 अप्रैल दोपहर 12.16 से 22 अप्रैल दोपहर 1.18 बजे तक
- 14 मई सायं 7.20 से 19 मई सायं 7.53 बजे तक
- 10 जून मध्यरात्रि बाद 3.40 से 15 जून मध्यरात्रि बाद 3.18 बजे तक
- 8 जुलाई दोपहर 12.31 से 13 जुलाई प्रातः 11.15 बजे तक
- 4 अगस्त रात्रि 8.47 से 9 अगस्त सायं 7.05 बजे तक
- 31 अगस्त मध्यरात्रि बाद 3.48 से 5 सितंबर मध्यरात्रि बाद 2.22 बजे तक
- 28 सितंबर प्रातः 9.39 से 3 अक्टूबर प्रातः 6.37 बजे तक
- 25 अक्टूबर दोपहर 3.24 से 30 अक्टूबर दोपहर 2.56 बजे तक
- 21 नवंबर रात्रि 10.24 से 26 नवंबर रात्रि 9.20 बजे तक
- 19 दिसंबर प्रातः 7.16 से 23 दिसंबर तड़के 4.32 बजे तक
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नोट: पंचक प्रारंभ और पूर्ण होने का समय उज्जैन की पंचांगों के अनुसार है। देशभर में प्रचलित पंचांगों में स्थानीय सूर्यादय, सूर्यास्त के अनुसार इन समयों में कुछ सेकंड का परिवर्तन संभव है। अतः पंचक का विचार करते समय स्थानीय पंचांगों और ज्योतिषीयों की सलाह अवश्य लें।
इसलिए देखना जरूरी है ‘पंचक’ :
पंचक यानी पांच। माना जाता है कि पंचक के दौरान यदि कोई अशुभ कार्य हो तो उनकी पांच बार आवृत्ति होती है। इसलिए उसका निवारण करना आवश्यक होता है। पंचक का विचार खासतौर पर किसी की मृत्यु के समय किया जाता है।
माना जाता है कि यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु पंचक के दौरान हो तो घर-परिवार में पांच लोगों पर मृत्यु के समान संकट रहता है। इसलिए जिस व्यक्ति की मृत्यु पंचक में होती है उसके दाह संस्कार के समय आटे-चावल के पांच पुतले या पिंड बनाकर साथ में उनका भी दाह कर दिया जाता है। इससे परिवार पर से पंचक दोष समाप्त हो जाता है।

पंचक में कौन से कार्य होते हैं वर्जित :
- पंचक के दौरान जिस समय घनिष्ठा नक्षत्र हो उस समय घास, लकड़ी आदि ईंधन एकत्रित नहीं करना चाहिए, इससे अग्नि का भय रहता है।
- पंचक में किसी की मृत्यु होने से और पंचक में शव का अंतिम संस्कार करने से उस कुटुंब या निकटजनों में पांच मृत्यु और हो जाती है।
- पंचक के दौरान दक्षिण दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि दक्षिण दिशा, यम की दिशा मानी गई है। इन नक्षत्रों में दक्षिण दिशा की यात्रा करना हानिकारक माना गया है।
- पंचक के दौरान जब रेवती नक्षत्र चल रहा हो, उस समय घर की छत नहीं बनाना चाहिए, ऐसा विद्वानों का मत है। इससे धन हानि और घर में क्लेश होता है।
- मान्यता है कि पंचक के दौरान बेड, चारपाई खरीदना या बनवाना भी बड़े संकट को न्यौता देना है।
- पंचक के प्रभाव से घनिष्ठा नक्षत्र में अग्नि का भय रहता है। शतभिषा नक्षत्र में कलह होने के योग बनते हैं। पूर्वाभाद्रपद रोग कारक नक्षत्र होता है। उत्तराभाद्रपद में धन के रूप में दंड होता है। रेवती नक्षत्र में धन हानि की संभावना होती है।
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ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक़, पंचक का प्रभाव अलग-अलग दिन के हिसाब से अलग -अलग होता है. हालांकि ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि पंचक किस दिन से शुरू हुआ है. जिस पंचक की शुरुआत रविवार से होती है वो रोग पंचक कहलाता है. शनिवार के दिन लगने वाले पंचक को मृत्यु पंचक माना गया है. जिस पंचक की शुरुआत सोमवार से होती है उसे राजपंचक कहा जाता है.
पंचक अगर मंगलवार को लगता है तो इसे अग्नि पंचक कहा जाता है. वहीं बुधवार तथा गुरुवार को लगने वाले पंचक को अशुभ पंचक कहा जाता है. पंचक अगर शुक्रवार के दिन लगता है तो इसे चोर पंचक कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि चोर पंचक में चोरी की संभावना बढ़ जाती है.
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