अमरनाथ गुफा, भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। इसलिए अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है। हर साल दुनिया भर से हजारों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन करने आते हैं। इस गुफा में 10-12 फीट ऊंचा प्राकृतिक शिवलिंग बनता है। Secret of Baba Amarnath Cave
ऐसा माना जाता है कि इस शिवलिंग के दर्शन करने से भगवान शिव की विशेष कृपा मिलती है। अमरनाथ गुफा दक्षिण कश्मीर के हिमालयवर्ती क्षेत्र में है। यह श्रीनगर से लगभग 145 किमी. की दूरी पर 3,888 मीटर (12,756 फुट) की उंचाई पर स्थित है।
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13-75 साल आयु वाले ही जा सकेंगे :
अमरनाथ यात्रा में 13 साल से कम आयु वालों का रजिस्ट्रेशन नहीं होता है। 13 से 75 साल तक आयु वाले ही यात्रा कर सकते हैं। इन्हीं लोगों का रजिस्ट्रेशन होता है।
स्वास्थ्य प्रमाणपत्र जरूरी :
यात्रा में जाने के लिए श्रद्धालु को अपना स्वास्थ्य प्रमाणपत्र बनवाना जरूरी है। इसके बिना रजिस्ट्रेशन नहीं होगा। यह प्रमाणपत्र शहर किसी बड़े सरकारी अस्पताल से बनाया जा सकता है। इस प्रमाणपत्र से इस बात की पुष्टि हो जाती है कि जाने वाला व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वस्थ है क्योंकि यह यात्रा दुर्गम सड़कों और पहाड़ों पर से पैदल ही होती है ।

यात्रा में ले जाएं ये चीजें :
यात्रा में एक टार्च, रेनकोट, छाता, स्पोर्ट्स शूज, ऊनी वस्त्रों में कैप, जैकेट, स्वेटर, दस्ताने, मोजे इनर आदि के अलावा खाने-पीने की वस्तुएं, जो जल्दी खराब न होती हों। यात्रा में जाने से पहले पैदल चलने का अभ्यास कर लें, चूंकि वहां पहाड़ों पर पैदल यात्रा करनी होती है।
कब होते हैं अमरनाथ के दर्शन :
अमरनाथ गुफा के शिवलिंग को ‘अमरेश्वर’ कहा जाता है। इसे बाबा बर्फानी कहना गलत है। यहां की यात्रा जुलाई माह में प्रारंभ होती है और यदि मौसम अच्छा हो तो अगस्त के पहले सप्ताह तक चलती है।
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हिन्दू माह अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा से प्रारंभ होती है यात्रा और पूरे सावन महीने तक चलती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव इस गुफा में पहले पहल श्रावण मास की पूर्णिमा को आए थे इसलिए उस दिन को अमरनाथ की यात्रा को विशेष महत्व मिला।
बर्फ का शिवलिंग अमरनाथ के अलावा विश्व में कहीं भी नहीं मिलता है। रक्षा बंधन की पूर्णिमा के दिन ही छड़ी मुबारक भी गुफा में बने हिमशिवलिंग के पास स्थापित कर दी जाती है। इस तीर्थ स्थल पर पहलगाम और बालटाल मार्गों से पहुंचा जा सकता है।
श्रीनगर से पहलगाम करीब 92 किलोमीटर और बालटाल करीब 93 किलोमीटर दूर है। पहलगाम या बालटाल पहुंचने के बाद आगे की यात्रा पैदल या घोड़े-खच्चर की मदद से करनी होती है।

कैसे बनता है शिवलिंग ? :
गुफा की परिधि लगभग 150 फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूंदें जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर सेंटर में एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूंदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है।
आश्चर्य की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि अन्य जगह टपकने वाली बूंदों से कच्ची बर्फ बनती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाती है। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फिट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग-अलग हिमखंड बन जाते हैं।
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गुफा के सेंटर में पहले बर्फ का एक बुलबुला बनता है। जो थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढ़ता रहता है और दो गज से अधिक ऊंचा हो जाता है। चन्द्रमा के घटने के साथ-साथ वह भी घटना शुरू कर देता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है।
चंद्र की कलाओं के साथ हिमलिंग बढ़ता है और उसी के साथ घटकर लुप्त हो जाता है। चंद्र का संबंध शिव से माना गया है। ऐसे क्या है कि चंद्र का असर इस हिमलिंग पर ही गिरता है अन्य गुफाएं भी हैं जहां बूंद-बूंद पानी गिरता है, लेकिन वे सभी हिमङ्क्षलग का रूप क्यों नहीं ले पाते हैं?
अमरनाथ गुफा की तरह कई गुफाएं हैं। अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते समय और भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं। वे सभी बर्फ से ढकी हैं और वहां पर छत से बूंद-बूंद पानी टपकता है लेकिन वहां कोई शिवलिंग नहीं बनता।

गुफा का पौराणिक इतिहास :
कश्मीर घाटी में राजा दश और कश्यप और उनके पुत्रों का निवास स्थान था। पौराणिक मान्यता है कि एक बार कश्मीर की घाटी जलमग्न हो गई। उसने एक बड़ी झील का रूप ले लिया। तब कश्यप ऋषि ने इस जल को अनेक नदियों और छोटे-छोटे जलस्रोतों के द्वारा बहा दिया।
उसी समय भृगु ऋषि पवित्र हिमालय पर्वत की यात्रा के दौरान वहां से गुजरे। तब जल स्तर कम होने पर हिमालय की पर्वत श्रृखंलाओं में सबसे पहले भृगु ऋषि ने अमरनाथ की पवित्र गुफा और बर्फ के शिवलिंग को देखा।
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मान्यता है कि तब से ही यह स्थान शिव आराधना और यात्रा का प्रमुख देवस्थान बन गया, क्योंकि यहां भगवान शिव ने तपस्या की थी।
गुफा के दर्शन का महत्व :
इस गुफा का महत्व इसलिए नहीं है कि यहां हिम शिवलिंग का निर्माण होता है। इस गुफा का महत्व इसलिए भी है कि इसी गुफा में भगवान शिव ने अपनी पत्नी देवी पार्वती को अमरत्व का मंत्र सुनाया था और उन्होंने कई वर्ष रहकर यहां तपस्या की थी, तो यह शिव का एक प्रमुख और पवित्र स्थान है।
शास्त्रों के अनुसार इसी गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था। माता पार्वती के साथ ही इस रहस्य को शुक (तोता) और दो कबूतरों ने भी सुन लिया था।

यह शुक बाद में शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गए, जबकि गुफा में आज भी कई श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई देता है जिन्हें अमर पक्षी माना जाता है।
भगवान शिव जब पार्वती को अमरकथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनवाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गंगाजी को पंचतरणी में तथा गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था। ये सभी स्थान अभी भी अमरनाथ यात्रा के दौरान रास्ते में दिखाई देते हैं।
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कबूतरों ने सुनी अमर होने की कथा :
कथा सुनते-सुनते देवी पार्वती को नींद आ गई और वह सो गईं जिसका शिवजी को पता नहीं चला। भगवान शिव अमर होने की कथा सुनाते रहे। उस समय दो सफेद कबूतर शिव जी से कथा सुन रहे थे और बीच-बीच में गूं-गूं की आवाज निकाल रहे थे।
भगवान शिव को लगा कि माता पार्वती कथा सुन रही हैं और बीच-बीच में हुंकार भर रहीं हैं। इस तरह दोनों कबूतरों ने अमर होने की पूरी कथा सुन ली।

कथा समाप्त होने पर भगवान शिव का ध्यान पार्वती की ओर गया जो सो रही थीं। जब महादेव की दृष्टि कबूतरों पर पड़ी तो वे क्रोधित हो गए और उन्हें मारने के लिए आगे बढ़े। इस पर कबूतरों ने भगवान शिव से कहा कि, ‘हे प्रभु हमने आपसे अमर होने की कथा सुनी है यदि आप हमें मार देंगे तो अमर होने की यह कथा झूठी हो जाएगी।
इस पर भगवान शिव ने कबूतरों को जीवित छोड़ दिया और उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव पार्वती के प्रतीक चिन्ह के रूप में निवास करोगे। अत: यह कबूतर का जोड़ा अजर-अमर हो गया।
ऐसा कहते हैं आज भी इन दोनों कबूतरों का दर्शन भक्तों को यहां प्राप्त होते हैं और इस तरह से यह गुफा अमर कथा की साक्षी हो गई और इसका नाम अमरनाथ गुफा के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
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कैसे पहुंचे पहलगाम :
सडक़ मार्ग-
अमरनाथ गुफा का बेहद पर्वतीय और कठिन स्थान पर है यहां देश के दूसरे हिस्सों से सीधे सडक़ की सुविधा नहीं है। सडक़ के रास्ते अमरनाथ पहुंचने के लिए पहले जम्मू तक जाना होगा फिर जम्मू से श्रीनगर तक का सफर करना होगा।
श्रीनगर से आप पहलगाम या बालटाल पहुंच सकते हैं इन दो स्थानों से ही पवित्र यात्रा की शुरुआत होती है। श्रीनगर से पहलगाम करीब 92 किलोमीटर और बालटाल करीब 93 किलोमीटर दूर है।
इसके अलावा आप बस या टैक्सी सेवाओ के जरिए भी पहलगाम पहुंच सकते हैं। दिल्ली से नियमित तौर पर बस सेवा अमरनाथ तक उपलब्ध रहती है।

इसके अलावा अगर आप मुंबई से अपनी गाड़ी से पहगाम आना चाहते हैं तो इस पूरे सफर में करीब 24 घंटे का समय लगेगा। इसके अलावा दिल्ली से अमरनाथ 631 किलोमीटर और बेंगलुरु से 2370 किलोमीटर दूर है।
हवाई मार्ग-
पहलगाम से अमरनाथ की पैदल चढ़ाई शुरु होती है और पहलगाम से सबसे नजदीकी एयरपोर्ट श्रीनगर में है जो करीब 90 किलोमीटर दूर है इसके अलावा जम्मू एयरपोर्ट भी दूसरा विकल्प है जो करीब 263 किलोमीटर दूर है।
श्रीनगर ओर जम्मू एयरपोर्ट देश के लगभग सभी बड़े शहरों से जुड़े हुए हैं। दिल्ली से श्रीनगर के बीच फ्लाइट करीब 1.35 मिनट का समय लेती है वहीं मुंबई से श्रीनगर फ्लाइट करीब 3 घंटे और बेंगलुरू से 4.40 घंटे लगते हैं। श्रीनगर से आप टैक्सी या बस के द्वारा पहलगाम जा सकते हैं।
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जम्मू से सडक़ मार्ग से पहलगाम पहुंचने में करीब 12-15 घंटे लगते हैं और श्रीनगर से आप बस के द्वारा पहलगाम तक जा सकते हैं जिसमें करीब 2.40 घंटे लगते हैं इसके अलावा आप टैक्सी से भी पहलगाम पहुंच सकते हैं इसमें करीब 2 घंटे लगते हैं।
रेल मार्ग-
पहलगाम से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन उधमपुर है जो करीब 217 किलोमीटर दूर है। लेकिन जम्मू रेलवे स्टेशन, उधमपुर की तुलना में ज्यादा अच्छी तरह से पूरे देश से जुड़ा है। जम्मू रेलवे स्टेशन का नाम जम्मू तवी है यहां से देश के करीब सभी बड़े शहरों के लिए ट्रेन चलती है।
अमरनाथ यात्रा रूट :

पहलगाम या बालटाल तक आप किसी भी वाहन से पहुंच सकते हैं लेकिन इससे आगे का सफर आपको पैदल ही करना होगा। पहलगाम और बालटाल से ही अमरनाथ की पवित्र गुफा तक पहुंचने के दो रास्ते निकलते हैं।
ये दोनो ही स्थान श्रीनगर से अच्छी तरह जुड़े हैं इसलिए अधिकतर श्रद्धालु श्रीनगर से ही अपनी यात्री की शुरुआत करते हैं। पहलगाम से अमरनाथ की पवित्र गुफा की दूरी करीब 48 किलोमीटर और बालटाल से 14 किलोमीटर है।
बालटाल रूट-
अमरनाथ गुफा तक बालटाल से कम समय में पहुंचा जा सकते हैं यह छोटा रूट है। बालटाल से अमरनाथ गुफा की दूरी करीब 14 किलोमीटर है लेकिन यह रास्ता काफी कठिन और सीधी चढ़ाई वाला है इसलिए इस रूट से ज्यादा बुजुर्ग और बीमार नहीं जाते हैं।
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पहलगाम रूट-
पहलगाम रूट अमरनाथ यात्रा का सबसे पुराना और ऐतिहासिक रूट है। इस रूट से गुफा तक पहुंचने में करीब 3 दिन लगते हैं। लेकिन यह ज्यादा कठिन नहीं है। पहलगाम से पहला पड़ाव चंदनवाड़ी का आता है जो पहलगाम बेस कैंप से करीब 16 किलोमीटर दूर है यहां तक रास्ता लगभग सपाट होता है इसके बाद चढ़ाई शुरू होती है।
इससे अगला स्टॉप 3 किलोमीटर आगे पिस्सू टॉप के रूप में दूसरा पड़ाव है। तीसरा पड़ाव शेषनाग है जो पिस्सू टॉप से करीब 9 किलोमीटर दूर है। शेषनाग के बाद अगला पड़ाव पंचतरणी का आता है जो शेषनाग से 14 किलोमीटर दूर है। पंचतरणी से पवित्र गुफा केवल 6 किलोमीटर दूर रह जाती है।