करंट लगने से किसी व्यक्ति की मौत हो जाए तो पीड़ित को कार्डियोप्लमनरी रिससिटेशन (सीपीआर) की पुरानी तकनीक 10 का फार्मूला प्रयोग करके 10 मिनट में होश में लाया जा सकता है। इस तकनीक में पीड़ित का दिल कम से कम प्रति मिनट 100 बार दबाया जाता है . वैसे तो ये तरीका अस्पतालों में भी इस्तेमाल किया जाता है पर वहां हाथों से दिल को दबाने की बजाय मशीनों का प्रयोग किया जाता है। सॉकेट में तीन पिन वाले छेद होते है और सॉकेट के ऊपर वाले छेद में लगी मोटी तार को अर्थिंग कहा जाता है . इस सॉकेट में ये अर्थिंग की तार हरे रंग की और न्यूट्रल तार काले रंग की होती है जब कि लाल तार करंट वाली तार होती है . इस तरह आसानी से पहचान सकते है . अर्थिंग तार का रंग हरा रखा जाता है। Treatment of Electric Shock
Read : मीठा खाने से नहीं, इन 5 कारणों से हो सकती है डायबिटीज
ध्यान रखे कि अर्थिंग की जांच हर छ: महीने बाद जरूर करवाये, क्योंकि समय और मौसम के साथ यह भी घिसती रहती है, खासकर बारिश के दिनों में इसलिए अर्थिंग को कभी भी हलके में न ले और इसे सुरक्षा तार समझ कर कभी भी नजर अंदाज न करे वरना दुर्घटना हो सकती है। सबसे खास बात ये कि तारों को सॉकेट में लगाने के लिए माचिस की तीलियों का प्रयोग कभी न करें और किसी भी तार को तब तक न छुएं, जब तक बिजली बंद न कर दी गई हो . वरना इससे करंट लगने का खतरा रहता है।

अर्थिंग के तार को न्यूट्रल के विकल्प के तौर पर प्रयोग न करें और सभी जोड़ों पर बिजली वाली टेप ही लगाएं, न कि सेलोटेप। मैटेलिक बिजली के उपकरण यानि मेटल की चीज़े कभी नल के पास मत रखें . रबड़ के मैट और रबड़ की टांगों वाले कूलर स्टैंड बिजली के उपकरणों को सुरक्षित बना सकते हैं . केवल सुरक्षित तारों और फ्यूज का ही प्रयोग करें। वैसे आप किसी भी आम टैस्टर से करंट के लीक होने का पता लगा सकते है . फ्रिज के हैंडल पर भी कपड़ा बांध कर रखें . हमेशा इस बात का ध्यान रखे कि प्रत्येक बिजली उपकरण के साथ जो निर्देश बताये जाते है वो जरूर पढ़े।
यदि आपको करंट लग भी जाये तो करंट लगने की इस हालत में उचित तरीके से इलाज करना बेहद जरूरी होता है.. इसलिए सबसे पहले मेन स्विच बंद कर उस व्यक्ति को बिजली से बचाने के लिए अपने हाथों का इस्तेमाल न करे इससे आपको भी झटका लग सकता है।
Read : नाखून से जानिए सेहत का हाल, बदलते रंग को न करें नज़रअंदाज़
कार्डियो प्लमनरी सांस लेने की प्रक्रिया तुरंत ही शुरू कर दें . क्लीनिक तौर पर यानि चिकित्सक तौर पर एक मृत व्यक्ति की छाती में एक फुट की दूरी से ही एक जोरदार धक्के से उसे होश में लाया जा सकता है . डॉ. अग्रवाल ने भी बताया है कि एकदम तेज करंट लगने से क्लिनिकल मौत 4 से 5 मिनट के अंदर ही हो जाती है। इसलिए कोई भी उपाय करने के लिए समय बहुत कम होता है।

ऐसे में मरीज को अस्पताल ले जाने का भी समय नहीं होता इसलिए वहीं पर उसी समय इस उपाय का इस्तेमाल करे और उस व्यक्ति के हृदय को अच्छे से दबा कर छाती से धक्का दीजिये ताकि आपकी इस उम्मीद भरी कोशिश से किसी की जान बच सके। ऐसे में अगर आप किसी को जीवन देकर ख़ुशी दे सके तो इससे आपका भी भला ही होगा . तो इस तकनीक को समझिये और सुरक्षा का हमेशा ध्यान रखिये।