हेल्लो दोस्तों आज के समय में एक से बढ़कर एक बीमारी पैदा हो रही है । जिसमें Tumor और Cancer सबसे खतरनाक बीमारियां है। ट्यूमर आज के समय में तेजी से होने वाली बीमारी है। हमारी Body में ट्यूमर तब होता है जब अचानक Healthy cells बढ़ना शुरू कर देती है और एक पिंड का रूप धारण कर देती है इस पिंड को ही ट्यूमर कहते हैं। Treatment of Neuroendocrine Tumors
ये भी पढ़िए : एक्यूट किडनी फेलियर हो सकता है घातक, इन तरीकों से करें बचाव
न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर इसे कार्सिनॉयड भी कहते हैं इसी से बॉलीवुड अभिनेता इरफ़ान खान भी पीड़ित थे, जिनका निधन हो गया है ट्यूमर शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता हैं। सामान्यता ट्यूमर भी अकैंसरकारी और कैंसरकारी होते हैं। कैंसरकारी ट्यूमर का इलाज असंभव होता है लेकिन अगर इलाज जल्दी ही करा लिया जाए तो कैंसरकारी ट्यूमर को भी ठीक किया जा सकता है
अब ये सवाल उठ रहे हैं कि ये बीमारी होती क्या है, ये कैसे होती है और ये कितनी खतरनाक है। मोटे तौर पर इस तरह का ट्यूमर शरीर के उन हिस्सों में जन्म लेता है जो हार्मोन पैदा करते हैं जैसे कि एंडोक्राइन या अंतःस्रावी ग्रंथियां। शरीर के कुछ भाग जैसे कि फेफड़े, पेट और आंतों में न्यूरोएंडोक्राइन कोशिकाएं मौजूद होती हैं जो रक्त संचार सही करने और खाने को पचाने का काम करती हैं। यह ट्यूमर इन्हीं कोशिकाओं में बनता है।

क्या होता है एंडोक्राइन या अंतःस्रावी तंत्र :
हमारे शरीर का अंतःस्रावी तंत्र ऐसी कोशिकाओं का बना होता है जो हार्मोन निस्स्रवित करती हैं। हार्मोन ऐसे रसायनिक पदार्थ होते हैं जो रक्त प्रवाह के साथ शरीर के विभिन्न भागों में पहुंचाए जाते हैं जिनका शरीर के विभिन्न अंगों, कोशिकाओं की क्रियाओं पर विशिष्ट प्रभाव होता है। यह बीमारी बेहद दुर्लभ तो है लेकिन अगर समय रहते इसका पता लग जाए तो यह लाइलाज नहीं है।
क्या है एंडोक्राइन या न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर :
‘न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर’ एक दुर्लभ किस्म का ट्यूमर होता है, जो शरीर में कई अंगों में भी विकसित हो सकता है। हालांकि मरीजों की की संख्या बताती है कि ये ट्यूमर सबसे ज़्यादा आंतों में होता है। इसका सबसे शुरुआती असर उन ब्लड सेल्स पर होता है जो ख़ून में हार्मोन छोड़ते हैं। ये बीमारी कई बार बहुत धीमी रफ्तार से बढ़ती है, लेकिन हर मामले में ऐसा हो, ये जरूरी नहीं है।
इस बीमारी का लक्षण शरीर के जिस हिस्से में होता है उसी ये तय होते हैं। जैसे यदि फेफड़े में हो जाए तो लगातार मरीज को बलगम रहेगा। यदि मरीज को पेट में हो जाए तो उसे लगातार कब्ज की शिकायत रहेगी। इस बीमारी के होने के बाद मरीज का ब्लड प्रेशर और शुगर लेवल घटता-बढ़ता रहता है। यह बीमारी जल्दी पकड़ में भी नहीं आती है। ब्लड टेस्ट, स्कैन और बायोप्सी करने के बाद ही ये बीमारी पकड़ में आती है।
ये भी पढ़िए : जानिए पैंक्रियाज कैंसर के लक्षण और बचाव के तरीके
इसका खतरा सबसे अधिक 40 वर्ष की आयु के आस पास के लोगों को अधिक होता है। रक्त चाप, सिरदर्द और बहुत ज्यादा पसीना आने पर इस उम्र के लोगों को बिना देर किए तुरंत जांच करानी चाहिए। हालांकि कुछ ट्यूमर ज्यादा नहीं बढ़ते हैं। अधिकतर न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर हौले-हौले बढ़ते हैं। अक्सर डॉक्टर इसे ऑपरेशन करके निकाल देते हैं या फिर रेडियोथेरपी, कीमोथेरपी के द्वारा छोटा कर देते हैं।
न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर के लक्षण :
यह सबसे अधिक पाया जाने वाला न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर है। इसे कार्सिनॉयड भी कहते हैं। गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर छोटी एवं बड़ी आंत सहित आहार नली के किसी भी भाग में हो सकते हैं। इसके लक्षण इस प्रकार हैंः

- त्वचा का लाल होना
- डायरिया
- सांस लेने में कठिनाई और घरघराहट होना
- दिल की धड़कन तेज और अनियमित होना
- निम्न रक्तचाप
- हृदय आघात
- उदर या मलाशय में बेचैनी या दर्द
- मचली और वमन
- डायरिया
- मलाशय से रक्तस्राव या मल में रक्त का आना
- रक्त अल्पता और उसके कारण होने वाली थकान
- सीने में जलन या अपाचन
- अमाशय में अल्सर- इनके कारण सीने में जलन, अपाचन और सीने एवं उदर में दर्द
- भार में कमी
- आंत में अवरोध- इसके कारण उदर में दर्द और कब्ज
न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर का उपचार :
डॉक्टर न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर के उपचार के लिए विभिन्न विधियों का प्रयोग करते हैं। लेकिन जब ट्यूमर के स्पश्ट लक्षण सामने नहीं दिखायी तब सीधे कोई उपचार करना कठिन हो जाता है। न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर बढ़ने की दर अलग अलग होती है लेकिन कभी कभी वे बहुत धीमी गति से बढ़ते हैं। कभी कभी तो ये महीनों-सालों तक बिना बढ़े यूं ही पड़े रहते हैं।
ये भी पढ़िए : शरीर के इस हिस्से में होता है दर्द तो हो सकता है कैंसर!
ऐसे में डॉक्टर स्कैनिंग के जरिए केवल इन पर नजर रखते हैं। लेकिन जब ट्यूमर बढ़ने लगता है या उसके लक्षण प्रकट होने लगते हैं तो अगर संभव हो तो ट्यूमर को निकालने के लिए सर्जरी की जाती है। अगर सर्जरी करना संभव न हो तो लक्षणों के अनुसार ट्यूमर के नियंत्रण के लिए अनेक उपचार आजमाए जाते हैं। कई बार एक साथ कई प्रकार के उपचार किए जाते हैं। इनमें शामिल हैंः
सर्जरी :
फीओक्रोमोसाइटोमा और मर्केल कोशिका कैंसर के लिए सर्जरी ही प्रमुख उपचार है। सर्जरी के दौरान, डॉक्टर ट्यूमर के साथ, उसके आस पास की कुछ स्वस्थ कोशिकाओं को भी निकाल देते हैं। इसके लिए अधिकतर लैप्रोस्कोपिक सर्जरी की जाती है। अगर सर्जरी से ट्यूमर को निकालना संभव न हो डॉक्टर दूसरे उपचारों की सलाह देते हैं।
रेडिएशन थैरिपी :
रेडिएशन थैरिपी में ट्यूमर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए उच्च ऊर्जा एक्स-किरणों या अन्य कणों का प्रयोग किया जाता है। आमतौर से रेडिएशन थैरिपी की सलाह तब दी जाती है जब ट्यूमर ऐसे स्थान पर हो जहां सर्जरी कर पाना कठिन या असंभव हो। जब न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर फैलने लगता है, तब भी रेडिएशन थैरिपी की जाती है। सामान्यतया दिए जाने वाले रेडिएशन उपचार को एक्सटरनल-बीम रेडिएशन थैरिपी कहते हैं क्योंकि इसमें शरीर के बाहर से मशीन द्वारा रेडिएशन दिया जाता है। जब रेडिएशन उपचार देने के लिए इम्प्लांट का उपयोग किया जाता है तो इसे इन्टरनल रेडिएशन थैरिपी या ब्रेकीथैरिपी कहते हैं।

रेडिएशन थैरिपी एक निष्चित अवधि में, निश्चित संख्या में उपचार दिए जाते हैं। मर्केल कोशिका कैंसर के लिए, अकसर रोग की पहली और दूसरी अवस्था में सर्जरी के बाद रेडिएशन थैरिपी दी जाती है। इसे एडजुवेंट थैरिपी कहते हैं। थकान महसूस होना, त्वचा पर चकत्ते बनना, पेट का अपसेट होना या अतिसार होना रेडिएशन थैरिपी के कुछ पार्ष्व प्रभाव हैं जो उपचार खत्म होने के बाद स्वयं ही खत्म हो जाते हैं।
कीमोथिरैपी :
कीमोथिरैपी में कोशिकाओं के बढ़ने और विभाजित होने की क्षमता को रोक कर, ट्यूमर कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है। इसमें शरीर के किसी भी भाग में ट्यूमर कोशिकाओं तक रसायनों को रक्त प्रवाह के जरिए पहुंचाया जाता है। इसमें रोगी को एक बार में एक औषधि या विभिन्न औषधियों के संयोजन को गोली के रूप में दिया जाता है। कीमोथिरैपी के पार्ष्व प्रभाव व्यक्ति विशेष पर या दी गई औषधि की मात्रा पर निर्भर करते हैं। इनमें थकान, किसी प्रकार का संक्रमण, मचली और वमन, भूख की कमी और डायरिया, बालों का झड़ना आदि प्रमुख हैं।
ये भी पढ़िए : रोजाना इस्तेमाल की जाने वाली इन चीज़ों से रहें सावधान हो सकता है कैंसर
टार्गेटेड थिरैपी :
टार्गेटेड थैरिपी या लक्षित उपचार में, उपचार का लक्ष्य मुख्यतः ट्यूमर की विशिष्ट जीन, प्रोटीन, या ऊतकों के आस पास का वह वातावरण होता है जो इसकी वृद्धि में योगदान देता है। इस उपचार से ट्यूमर कोशिकाओं की वृद्धि और प्रसार रुक जाता है और स्वस्थ कोशिकाओं को कुछ खास नुकसान नहीं होता। अध्ययनों में देखा गया है कि सभी ट्यूमरों का समान लक्ष्य नहीं होता। प्रभावी उपचार के लिए पहले सही जीन, प्रोटीन और अन्य कारकों का पता लगाने के लिए अनेक परीक्षण किए जाते हैं।
रेयर है ये बीमारी :
इरफान खान को जो बीमारी है वह बहुत ही रेयर है। आंकड़ों की मानें तो एक लाख में सिर्फ पांच लोगों को ही ये बीमारी हो सकती है। इस बीमारी में न्यूरोइंडोक्राइन कोशिकाएं बढ़ती रहती है और एक ट्यूमर में परिवर्तित हो जाती है। यह शरीर के अन्य भागों में भी फैल सकती है।
ये भी पढ़िए : राशि के अनुसार जानिए कैसा होगा आपकी होने वाली पत्नी का स्वभाव