वैदिक धर्म में पूजा पद्वति अपना एक विशेष स्थान रखती है। वैदिक धर्म का पालन करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपने इष्ट देव की आराधना महत्वपूर्ण मानी जाती है, लेकिन उससे भी कहीं ज्यादा अहमियत रखता है ईश्वर की आराधना करने का तरीका। Uses of Kapoor Aarti
आपने अक्सर देखा होगा कि ईश्वर की पूजा करने के बाद जब आरती की जाती है तो उसमें कपूर का प्रयोग अवश्य किया जाता है। धूप, अगरबत्ती के साथ कपूर को भी जलाया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों?
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आपने अक्सर देखा होगा कि ईश्वर की पूजा करने के बाद जब आरती की जाती है तो उसमें कपूर का प्रयोग अवश्य किया जाता है। धूप, अगरबत्ती के साथ कपूर को भी जलाया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों?
हिंदू धर्म में देशी घी के दीपक और कपूर से देवी-देवताओं की आरती करने की पूजा पद्धति है। आरती में कपूर का प्रयोग किए जाने की परंपरा के पीछे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण छिपे हुए हैं, जो इस प्रकार हैं-
१. कपूर की सुगंध से वातावरण में सतोगुण की वृद्धि होती है और मन सरलता से भक्तिभाव में दृढ़ हो जाता है
२. आरती करते समय कपूर की सुगंध से भगवान बी शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और साधक की मनोकामना शीघ्र पूर्ण करते हैं।
३. धर्मग्रंथों के अनुसार कपूर जलाने से देवदोष एवं पितृदोष का शमन होता है।
४. वैज्ञानिक अनुसंधानों के अनुसार जलते हुए कपूर की सुगंध में रोग फैलाने वाले जीवाणु, विषाणु आदि नष्ट करने की क्षमता होती है, जिससे रोग फैलने का भय नहीं रहता।
जिस तरह कपूर के जलने के पश्चात वातावरण सुगंधित हो जाता है, यह इस बात को दर्शाता है कि व्यक्ति अपने भीतर के अहंकार को जलाकर चारो ओर अच्छाई और सकारात्मकता को फैलाएगा। साथ ही वह इस बात के लिए भी प्रतिबद्ध होता है कि उसकी ओर से ज्ञान का प्रसार करने की भी पूरी कोशिश की जाएगी।
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कपूर की जोत, महादेव के क्रोध की ज्वाला की परिचायक भी है, जिसके भीतर संसार की सभी अशुद्धियां और नकारात्मक शक्तियां जलकर भस्म हो जाती हैं। आरती के दौरान हम अपनी आंखें बंद कर आत्म चिंतन का प्रयास करने के साथ-साथ अपनी आत्मा की बात सुनने का भी प्रयत्न करते हैं। ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित होने के पश्चात ही हम गलत और सही में भेद कर सकते हैं।
आरती के संपन्न होने के बाद ज्योति के ऊपर हाथ रखकर उसके धुएं का स्पर्श अपने मस्तक और आंखों पर करते हैं, जिसका तात्पर्य है कि हम अपने ईश्वर से यह प्रार्थना कर रहे हैं कि वे हमारे विचारों और दृष्टिकोण को शुद्धता प्रदान करें।
कपूर बनाने का तरीका वैदिक काल से एक समान रूप से चला आ रहा है, जिसका संबंध आयुर्वेद से है। दालचीनी के पेड़ और उसकी छाल से स्वच्छ कर कपूर को बनाया जाता है। सफेद कपूर एक अच्छा एंटी ऑक्सिडेंट भी होता है।
कपूर के विषय में यह माना जाता है कि यह वातावरण को शुद्ध करने के साथ-साथ आसपास फैले बैक्टीरिया को भी समाप्त करता है।
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त्वचा के लिए फायदेमंद त्वचा के साथ मिलकर यह ठंडक का भी एहसास करवाता है। आजकल अरोमा थेरेपी और लेप के मिश्रण के अंदर भी कपूर का प्रयोग किया जाता है।
अगर सही चिकित्सीय प्रक्रिया के अनुसार इसका प्रयोग किया जाए तो यह नसों की गड़बड़ी के साथ-साथ मिर्गी की बीमारी, मानसिक चिंता आदि में भी फायदेमंद साबित हो सकता है। लंबे समय से चली आ रही मानसिक कुंठा का इलाज भी कपूर द्वारा किया जा सकता है।
उपरोक्त बिंदुओं पर विचार किया जाए, उन्हें गंभीरता से लिया जाए तो कपूर ना सिर्फ आध्यात्मिक रूप से फायदेमंद है, बल्कि आम जन जीवन में भी इसका एक बड़ा रोल है। इसका प्रयोग हमें मानसिक शांति तो देता ही है साथ ही विज्ञान ने भी इसकी उपयोगिता को प्रमाणित कर दिया है.
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