हेल्लो दोस्तों आज इस संस्करण में हम आपको वास्तु पुरुष के बारे में बताने जा रहे हैं जब भी किसी मकान, भवन या कारखाने का निर्माण किया जाता है, तो उसके पहले वहां वास्तु पूजा की जाती है. माना जाता है कि किसी भी निर्माण की नींव की वास्तु पूजा करना बेहद महत्वपूर्ण है, वरना वहां सुख-शांति और समृद्धि का वास नहीं होता. इसीलिए हमारे देश में वास्तु शास्त्र के अनुसार वास्तु पूजा का विधान है. Vastu Purush And His Importance
ये भी पढ़िए : जिन घरों में अपनाए जाते हैं ये वास्तु नियम, होते हैं बहुत लकी
कौन हैं वास्तु पुरुष? :
आपको शायद पता नहीं कि वास्तु पुरुष भवन के मूल संरक्षक होते हैं. पुराणों के अनुसार एक बार देवासुर संग्राम के दौरान भगवान शिव को बहुत पसीना आता है और जब वह पसीना ज़मीन पर गिरता है, तो वहां एक विशालकाय व्यक्ति बन जाता है. उसे बहुत भूख लगी थी, तो शिव जी की आज्ञा से वो दानवों पर टूट पड़ता है और सभी को खा जाता है, लेकिन उसकी भूख नहीं मिटती, तब वो शिव जी को तीनों लोकों को खाने की आज्ञा मांगी. शिव जी ने जैसे ही आज्ञा दी को तेज़ी से भूलोक की ओर दौड़ा. उसे देखकर समस्त देवतागण और ब्रह्माजी चिंचित हो गए.
देवताओं में ब्रह्माजी से कोई उपाय करने को कहा, तो ब्रह्माजी ने उन्हें उस विशालकाय व्यक्ति को औंधे मुंह गिराने के लिए कहा, ताकि वो कुछ खा न सके. सभी देवताओं ने ज़ोर लगाकर उसे धरती पर औंधे मुंह गिरा दिया और सभी ऊपर से चढ़कर दबा दिए, ताकि वो कुछ खा न सके.
पैंतालीस देवगणो एवं राक्षसगणो में से बत्तीस इस पुरुष की पकड़ से बाहर थे एवं तेरह इस पुरुष की पकड़ में थे | इन सभी पैंतालीस देवगणो एवं राक्षसगणो को सम्मलित रूप से “वास्तु पुरुष मंडल” कहा जाता है जो निम्न प्रकार हैं –

1. अग्नि 2. पर्जन्य 3. जयंत 4. कुलिशायुध 5. सूर्य 6. सत्य 7. वृष 8. आकश 9. वायु 10. पूष 11. वितथ 12. मृग 13. यम 14. गन्धर्व 15. ब्रिंगवज 16. इंद्र 17. पितृगण 18. दौवारिक 19. सुग्रीव 20. पुष्प दंत 21. वरुण 22. असुर 23. पशु 24. पाश 25. रोग 26. अहि 27. मोक्ष 28. भल्लाट 29. सोम 30. सर्प 31. अदिति 32. दिति 33. अप 34. सावित्र 35. जय 36. रुद्र 37. अर्यमा 38. सविता 39. विवस्वान् 40. बिबुधाधिप 41. मित्र 42. राजपक्ष्मा 43. पृथ्वी धर 44. आपवत्स 45. ब्रह्मा।
इन पैंतालीस देवगणो एवं राक्षसगणो ने शिव भक्त के विभिन्न अंगों पर बल दिया एवं निम्नवत स्थिति अनुसार उस पर बैठे :
अग्नि– सिर पर; अप– चेहरे पर; पृथ्वी धर और अर्यमा- छाती (चेस्ट); आपवत्स– दिल (हृदय); दिति और इंद्र- कंधे; सूर्य और सोम – हाथ; रुद्रा और राजपक्ष्मा– बायां हाथ; सावित्र और सविता – दाहिने हाथ; विवस्वान् और मित्र– पेट; पूष और अर्यमा– कलाई; असुर और शीश– बायीं ओर; वितथ– दायीं ओर; यम और वायु– जांघों; गन्धर्व और पर्जन्य – घुटनों पर; सुग्रीव और वृष– शंक; दौवारिक और मृग- घुटने; जय और सत्य– पैरों पर उगने वाले बाल पर; ब्रह्मा– हृदय पर विराजमान हुए |
ये भी पढ़िए : अगर घर में होंगे ये वास्तु दोष, तो कभी नही टिकेगा पैसा
तब उन्होंने ब्रह्माजी से कहा कि क्या मैं ऐसे ही हमेशा रहूंगा? तब ब्रह्माजी ने उसे वरदान दिया की हर तीन महीने में तुम दिशा बदलोगे और धरती पर किसी भी निर्माण कार्य से पहले तुम्हारी पूजा अनिवार्य होगी, अगर ऐसा न किया गया, तो तुम उन्हें सता सकते हो. तब से हर निर्माण कार्य से पहले वास्तु पूजा की जाती है और वास्तु पुरुष को प्रसन्न किया जाता है.
वास्तु पुरुष की प्रतिमा :
विवादित भवन या निर्माण स्थल को शुद्ध करने के लिए वहां वास्तु पुरुष की प्रतिमा की स्थापना की जाती है. वास्तु पुरुष को जिस स्थान पर स्थापित किया जाता है, वहां हर आमवस्या या पूर्णिमा को नैवेद्य चढ़ाना आवश्यक है. कहते हैं ऐसा करने से वास्तु पुरुष प्रसन्न रहते हैं और उस स्थान पर तरक़्क़ी होती है.
वास्तु पुरुष और तथास्तु :
आपने बड़े बुज़ुर्गों को कहते सुना होगा कि हमेशा अच्छा बोलो, कभी बुरा मत बोलो, क्योंकि बुरा जल्दी फलित होता है. वास्तु शास्त्र के अनुसार, वास्तु पुरुष हमेशा तथास्तु बोलते रहते हैं, इसलिए हम जो भी बोलते हैं, वो सच हो जाता है, इसलिए हमेशा अच्छा बोलना चाहिए. वास्तु शास्त्र में यह भी है कि वास्तु पुरुष हमेशा हमें आशीर्वाद देते रहते हैं. उनके कारण ही हमारा घर सुरक्षित रहता है. घर में सुख शांति और समृद्धि बढ़ती है.

प्रसन्न करने के लिए लगाएं भोग :
शास्त्रों में लिखा है कि रोज़ ही घर में जो भी बनता है उसका भोग वास्तु पुरुष को लगाना चाहिए, इससे घर में सुख-शांति बनी रहती है, लेकिन अगर रोज़ाना मुमकिन नहीं तो हर अमावस्या और पूर्णिमा को ज़रूर भोग लगाना चाहिए. जो भी खाना बना है उसे थाली में निकालकर उस पर घी ज़रूर डालें और उसे उस स्थान पर ले जाएं, जहां वास्तु पुरुष को स्थापित किया गया हो.
पहले जल से उस स्थान को शुद्ध कर दें, फिर जल से थाली को आचमन दें. अब थाली को उठाकर रसोई में लाएं और घर के मुखिया को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने के लिए दें. ऐसा करने से वास्तु पुरुष प्रसन्न होते हैं और वहां सुख-समृद्धि और धन की वर्षा होती है.
ये भी पढ़िए : कान का संक्रमण दूर करने के घरेलू उपाय और नुस्खे