भारतीय रिजर्व बैंक यानी RBI भारत की मौद्रिक संस्था है. आरबीआई नए नोटों को प्रिंट करने का भी काम करता है, जिन्हें पूरे देश में फैलाया जाता है. आपको बता दें कि आरबीआई एक रुपये के नोट को छोड़कर सभी नोटों की छपाई का काम करता है, लेकिन 1 रुपये के नोट की छपाई और सिक्कों को ढालने का काम भारत के वित्त मंत्रालय के ऊपर है.
भारत के चार शहर हैं जहां सिक्के ढाले जाते हैं
1. मुंबई
2. कोलकाता
3. हैदराबाद
4. नोएडा
मुंबई और कोलकाता मिंट की स्थापना अंग्रेजों ने साल 1829 में की थी, जबकि हैदराबाद मिंट की स्थापना हैदराबाद के निजाम ने साल 1903 में की थी, जिसे साल 1950 में भारत सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया और साल 1953 से सिक्के ढालने शुरू किया. इसके बाद साल 1986 में सबसे आखिरी मिंट की स्थापना की गई जोकि नोएडा में शुरू किया गया.
निशान से पता चलता है कहां ढला है सिक्का
हर सिक्के पर एक निशान ऐसा होता है, जिसे देखकर पता चलता है कि ये किस मिंट में ढला है. अगर ढलाई की तारीख के नीचे एक स्टार नजर आता है तो ये हैदराबाद का है. नोएडा के सिक्कों में साल के नीचे एक ठोस डॉट बना होता है. मुंबई के सिक्कों में डायमंड का निशान होता है और कोलकाता के सिक्कों में कोई निशान नहीं होता है.
लेकिन सवाल ये हैं कि आखिर सिक्कों का आकार छोटा क्यों होता जा रहा है?
जब भारत में सरकार के पास सिक्के ढालने की मशीनरी कम हुआ करती थी तो कई विदेशी टकसालों में भारत के सिक्के ढलवाए जाते थे और फिर उनका निर्यात किया जाता था. भारत ने साल 1857-58, 1943, 1985, 1997-2002 के दौरान सिक्कों का आयात किया था. इस समय सिक्के तांबे और निकिल के बनाए जाते थे.
इसके बाद साल 2002 के बाद जब तांबे और निकिल के दामों में इजाफा हुआ तो सिक्कों की लागत में भी इजाफा हो गया. इसके बाद फेरिटिक स्टेनलेस स्टील का इस्तेमाल होने लगा और अब इसी धातु से सिक्के बनाए जाते हैं. इसमें 17% क्रोमियम और 83% लोहा होता है.
सिक्कों का आकार क्यों हो रहा है छोटा?
दरअसल किसी भी सिक्के की दो वैल्यू होती है, जिसमें से एक होता है, सिक्के की ‘फेस वैल्यू’ और दूसरी होती है उसकी ‘मेटेलिक वैल्यू.’
सिक्के की फेस वैल्यू :
इस वैल्यू से मतलब उस सिक्के पर जितने रुपये लिखे होते हैं. ये उसकी फेस वैल्यू होती है.
सिक्के की मेटेलिक वैल्यू :
इसका मतलब ये है कि वो जिस धातु से बना है. अगर उस सिक्के को पिघला दिया जाए तो उस धातु की मार्केट वैल्यू कितनी होगी. इस बात से आप समझ सकते हैं कि सिक्कों का आकार छोटा क्यों छोटा हो रहा है?
अब मान लीजिए कि अगर आप रुपये का सिक्का पिघलाते हैं और उस धातु को बाजार में बेचते हैं तो वो 2 रुपये में बिकता है और आपको एक रुपये का फायदा होता है. लेकिन अगर किसी सिक्के की मेटेलिक वैल्यू उसकी फेस वैल्यू से कम होती है. इसी के चलते सरकार हर साल सिक्कों का आकार कम करती जा रही है और सस्ती धातु का इस्तेमाल कर रही है.